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फल-सिद्धि
सिद्धि के तीन चरण
(१) दर्शन–सिद्धि
पहले चरण में साधक को रात्रि में या ध्यानावस्था में चंद्ररति के प्रकाश–रूप का दर्शन होता है।
यह संकेत है कि साधना स्वीकार हो चुकी है।
(२) संवाद–सिद्धि
इस स्तर पर अप्सरा मन या स्वप्न के माध्यम से संवाद करती है।
(३) संयोग–सिद्धि (पूर्ण सिद्धि)
यह अंतिम और दुर्लभ अवस्था है।
यहाँ अप्सरा साधक की आत्मिक संगिनी या दिव्य पत्नी (योगिनी–स्वरूपा) बन जाती है।
⚡ इस अवस्था में चंद्ररति साधक के चारों ओर स्थायी रूप से रहती है।
वह उसके कार्यों में, साधना में, और जीवन के निर्णयों में प्रेरणा देती है।
साधक को “सर्व-सिद्धि योगिनी–संयोग” कहा जाता है।
यह कोई भौतिक विवाह नहीं, बल्कि आत्मिक संघ (Spiritual Union) होता है —
जहाँ साधक की चेतना और अप्सरा की ऊर्जा एक हो जाती है।